T-571 : मौत के मुहाने पर जिंदगी का संघर्ष

13 अक्टूबर 1972 को उरुग्वे एयरफोर्स का T-571 चार्टेड प्लेन कुल 45 लोगों के साथ उरूग्वे के शहर मोंटेवीडियो से चिली देश की राजधनी सेंटिआगो के लिए उड़ान भरता है| इन 45 लोगों में क्रू मेंबर(उड़ान टीम) और एक रग्बी टीम के 19 खिलाड़ियों का एक दल भी शामिल था जिसमें उनके दोस्त औऱ परिवार जन शामिल थे|
मोंटेवीडियो (उरूग्वे) से सेंटिआगो (चिली) की हवाई दूरी वैसे तो मात्र 3 घण्टे की थी किन्तु रास्ते में आने वाली दुनिया की सबसे लंबी औऱ दूसरी सबसे ऊंची एंडीज पर्वतमाला कई बार इस दूरी में कई घण्टों का इजाफा कर दिया करती थी| 12 अक्टूबर 1972 को भी उस उड़ान के रास्ते में इस पर्वतमाला के ऊपर बर्फीला तूफान आया हुआ था जिसके मद्देनजर पायलट दांते ने आगे नही बढ़ने का निर्णय लेते हुए प्लेन को अर्जेंटीना के शहर मेंडोजा में लैंड करवा दिया|
Uruguayan Air Force T-571
अगले दिन 13 अक्टूबर को वे फिर अधूरी यात्रा को पूरा करने के लिए मेंडोजा से उड़ान भरते है किंतु दुर्भाग्य से उस दिन भी मौसम खराब ही मिलता है और उनका विमान उस तूफान में रास्ता भटक जाता है| प्लेन के पायलट लेफ्टिनेंट कर्नल दांते हेक्टर लगुरारा एक कम अनुभवी पायलट थे इसलिए खराब मौसम के दौरान न तो वे सही दिशा औऱ स्थिति का सही अनुमान लगा पाये और न ही आपातकाल में वे सही निर्णय ले पाए| इसी दौरान उनके विमान का पिछला हिस्सा एक पहाड़ी से टकरा जाता है औऱ उसके पंख और पीछे का हिस्सा टूट जाते है जिसमें होकर 2-4 लोग हवा में उड़कर सदा सदा के लिए गायब हो जाते है| ऐसा होने के बाद पायलट विमान से अपना नियंत्रण खो देते है और विमान एंडीज की पहाड़ी पर पड़ी बेशुमार बर्फ के बीच अनियंत्रित होकर गिर जाता है|
अपने तय रुट से 80 किमी दूर गिरे इस विमान में 45 में से 33 लोग इसके क्रेश के समय तक जिंदा बच जाते है और उम्मीद करते है कि कुछ ही दिनों में उन तक रेस्क्यू टीम पहुँच जाएगी और उन्हें बचा लिया जाएगा| मात्र चार घण्टे के भीतर चिली एयरफोर्स अपना सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर देती है किंतु पहले दिन उन्हें सही जगह का अंदाजा नही लग पाता है|एक बर्फीली रात को बीतते ही 5 और यात्री दम तोड़ देते है और बचने वालों की संख्या 28 रह जाती है|
13 अक्टूबर से 21 अक्टूबर के बीच 8 दिनों तक उरूग्वे-चिली और अर्जेंटीना के द्वारा संयुक्त तलाश अभियान चलाया जाता है किंतु 8 दिनों की असफलता के बाद इस अभियान को ये मानकर बन्द कर दिया जाता है कि इस माइनस 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अभी तक सब लोग मर चुके होंगे|11वें दिन उन्हें प्लेन में मिले वन वे ट्रांजिस्टर से सन्देश मिलता है कि रेस्क्यू ऑपरेशन रोक दिया गया है इससे उनकेबचने की सभी उम्मीदें टूट जाती है| 13 वें दिन से वे खाने का सब सामान बीत जाने पर अपने मरे हुए साथियों की लाश को खाना शुरू कर देते है| 16 वें दिन उन पर हिमस्खलन की आफत आकर गिरती है जिसमें एक बार तो वे सभी दफन हो जाते है किंतु बहुत प्रयासों के बाद 9 साथियों को सदा के लिए खोने के बाद शेष 19 लोग 3 दिन के बाद बर्फ से बाहर निकल आते है| अब उन्हें ये समझ नही आ रहा था कि वे बचाव के लिए क्या उपाय करें क्योंकि उन्हें नही पता था कि वे किधर जाकर कोई मदद प्राप्त कर सकते हैं|
मरने से बेहतर था कि उनमें से कोई मदद के लिए किसी एक दिशा में लगातार आगे बढ़े औऱ ऐसी जगह तक पहुँचे जहां से वे अपनी उपस्थिति का संदेश बाकी दुनिया तक पहुँचा सके| इसके लिए तीन लोगों ने ये तय किया कि वे पहाड़ी पर चढ़कर आगे बढ़ेंगे उन तीन में शामिल थे-रोबर्टो कैनेसा, फर्नान्डो पराडो औऱ विज़िन्टिन| ये तीनों 10 दिन लगातार पश्चिम दिशा में चलने के बाद आखिरकार उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें 65-70 दिन बाद किसी इंसान के दर्शन हुए| इस बीच क्रेश के 59वें दिन एक हिमस्खलन आता है उसमें तीन और लोग मारे जाते हैं और जीवित लोगों की संख्या अब मात्र 16 रह जाती|
10 दिन में करीब 55 किमी की यात्रा करके पराडो और कैनेसा अपना संदेश बाकी दुनिया तक पहुँचाने में सफल होते है औऱ उस क्रैश में जीवित बचे सभी 16 लोगों को चिली एयरफोर्स द्वारा 72 दिनों बाद 23 दिसंबर 1973 को रेस्क्यू कर लिया जाता है|

ये कहानी बताती है कि इंसान अगर चाहे तो अविश्वसनीय रूप से कठिन परिस्थितियों को भी हराकर उनसे पार पा सकता है|

Uruguayan Air Force T-571
A chartered plane, T-571 of the Uruguayan Air Force took off from Montevideo (Uruguay) to Santiago, the capital of Chile on October 13, 1972.This plane was carrying 45 passengers including crew members (flight team) and a group of 19 rugby players with their friends and family.
The flight from Montevideo (Uruguay) to Santiago (Chile) is generally supposed to be completed in just in three hours. However, the route often takes several hours due to the world’s longest and second-highest mountain range, the Andes in the way. On October 12, 1972, as the plane flew towards the Andes, a snow-storm blocked its way. Due to this, the pilot, Captain Dante, decided to land the plane in the city of Mendoza, Argentina.
The next day, October 13, they started to complete their journey from Mendoza but encountered bad weather again. Unfortunately, due to Lieutenant Colonel Dante’s limited experience as a pilot, he couldn’t accurately judge the direction and conditions during the storm.His in-experience led the plane’s rear part to collide with a mountain. This collision caused the wings and the back part of the plane to break, leaving 2-4 people to disappear into the air.
The crash left the pilot, Lieutenant Colonel Dante confused and terrified. He was unable to control the aircraft which ultimately crashed uncontrollably amid vast snow-covered peaks of the Andes mountains.
Out of the 45 passengers, 33 survived the crash but faced a grim reality of survival in the harsh, freezing conditions. They hoped for a quick rescue, believing that a search and rescue operation would reach them within a few days. However, their hopes could not be reality as the Chilean Air Force’s initial search and rescue efforts were unsuccessful.
Over the next eight days, from October 13th to October 21st, a joint search campaign between Uruguay, Chile, and Argentina was launched. But after the eighth day, it was deemed unsuccessful, with the belief that all had died to the extreme -30 degrees Celsius temperatures.

Start eating the corpses of dead comrades

On the 11th day, a message was received via the plane’s radio that the rescue operation had been stopped.This was heart-breaking news for all of them. By the 13th day, with their food supplies exhausted, the survivors resorted to consuming the flesh of their deceased companions to survive.
Uruguayan Air Force T-571
By the 16th day, an avalanche further devastated them, burying three more individuals and leaving only 16 survivors. Determined to send a signal to the rest of the world, three men – Roberto Canessa, Fernando Parrado, and Antonio Vizintín – decided to trek westward, enduring a grueling 10-day journey across the mountains.

After 72 Day

Finally, after traveling approximately 55 kilometers in 10 days, Parrado and Canessa successfully reached to the destination where they could convey their message to rescue them. Eventually, on December 23, 1972, 72 days after the crash, all 16 survivors were rescued by the Chilean Air Force.
This story illustrates that humans, when determined, can overcome unbelievably challenging circumstances and prevail against all odds.

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