Public Welfare V/S मुफ्तखोरी

For the last few years, this discussion has been going on loudly or it is being deliberately fueled that public welfare schemes are actually freebies. Is it right to call public welfare schemes freebies and a waste of tax-payers’ money? Can a country become poor because of public welfare schemes? And should governments stop public welfare schemes?

Beginning of the narrative of freebies

Since the independence of the country, every government has been making and implementing schemes for the welfare of the people, but after the schemes of the Aam Aadmi Party government of Delhi, this narrative has gained more air that the Delhi government is promoting freebies.
The Delhi government announced to reduce electricity and water bills to zero till a certain limit and fulfilled that promise after winning. Along with this, they provided free public transport facility for women. The Delhi government kept the improvement of schools and hospitals in Delhi as its top priority.
All these steps were taken with the intention of public welfare, the benefit of which was that the people of Delhi gave their full support to the Aam Aadmi Party government, which was bound to make other political parties restless.
Political parties could not directly point fingers at the facilities for the public, so they started the hoax of the state’s economy being bankrupt, whereas the reality is that Delhi is one of the few states in the country whose budget is in surplus, meaning they earn more than their expenditure.

Can any state or country go bankrupt due to public welfare?

Public welfare schemes are called freebies and it is argued that this will make the country/state bankrupt. Now the thing to understand here is that when the people of the country are educated, healthy and prosperous
how will the country be ruined? What is the meaning of a country? Don’t people come under the definition of a country? Shouldn’t the people be made strong and capable in order to strengthen the country?
How is it possible that the people of the country remain uneducated, weak, poor and malnourished and the country becomes strong? After all, a country is made by the people only, how can a country be made strong without strengthening the people? A country does not mean only the flag, the picture of Bharat Mata and the national anthem,
what will be the meaning of all these without the people? No country has become poor due to welfare schemes and neither is it possible for this to happen. In fact, the country is ruined due to the inefficiency and corruption of the governments, the blame of which is put on the schemes being run for the common people.
People who argue that the country is ruined should study the model of European countries that how they remain on top of the world even after providing five star facilities to the majority of the country’s population. How to make the best use of our human resources? How to make them capable and competent and use them in the interest of the country,
these things should also be learned by our governments. If not more, then at least the economic management of the Delhi government should be seen that how they are able to give a surplus budget even after keeping public welfare as their priority.
Public Welfare

Interest of poor people V/S Interest of rich people

When the government waives off the loans of lakhs of crores of rupees of the industrialists of the country, then no one cares, but as soon as any scheme comes to provide relief to the poor man, then the people who worry about the economy start getting severe stomach cramps.
Forgiving off the loan of lakhs of crores of rupees is like writing off, whereas the public welfare schemes worth thousands of crores are said to be the reason for the ruin of the country. What is the need to give relief to those who are capable? No one wants to say this reasonable thing, whereas the poor who does not have a home, is insulted by calling freebies and building a house for him.
There is no country in the world which does not run a scheme for the welfare of its weak and backward people, but now such a class has emerged in our country which has an objection to helping the weaker sections. Actually, it is the mandatory duty of the government to arrange a minimum economic-social security for all the people of the country.
Calling public welfare freebies is an insult to the country. Till all the people of the country are not brought to a minimum standard of living, this country will neither become a big superpower nor a world leader. Big industrialists and salaried people do not do any favor to the country by paying taxes, rather the business of industrialists and the salary of salaried people run on the strength of the common citizens of the country.

लोककल्याण बनाम मुफ्तखोरी

किसी भी लोकतांत्रिक सरकार का मूल कर्तव्य अथवा उद्देश्य अधिक से अधिक लोककल्याण को सुनिश्चित करना है| हर लोकतांत्रिक सरकार का ये दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के चहुँमुखी विकास की बुनियाद तैयार करें| बिना लोककल्याण की अवधारणा के लोकतंत्र की कल्पना ही सम्भव नही है
अभी पिछले कुछ सालों से ये चर्चा जोर शोर से की जाने लगी या उसे जानबूझकर हवा दी जा रही कि लोककल्याण की योजनाएं असल में मुफ्तखोरी है| लोककल्याण की योजनाओं को मुफ्तखोरी बताना और टैक्स-पेयर्स के पैसे की बर्बादी बताया जाना क्या उचित है? क्या लोककल्याण की योजनाओं से कोई देश कंगाल हो सकता है? और क्या सरकारों को लोककल्याण की योजनाएं बन्द कर देनी चाहिए?

मुफ्तखोरी के नैरेटिव की शुरुआत

देश की आजादी के बाद से ही हर सरकार लोगों के कल्याण के लिए योजनाएँ बनाकर लागू करती रही है किन्तु दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की योजनाओं के बाद इस नैरेटिव को ज्यादा हवा मिली है कि दिल्ली सरकार मुफ्तखोरी को बढ़ावा दे रही है|
दिल्ली सरकार ने एक तय सीमा तक बिजली औऱ पानी की बिल को जीरो करने का ऐलान किया औऱ जीत के बाद उस वादे को निभाया| इसी के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए फ्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध करवाई|
दिल्ली सरकार ने दिल्ली की स्कूल और अस्पताल अच्छे बनाने को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा| ये सभी कदम लोककल्याण की मंशा से उठाये गए जिसका लाभ ये हुआ कि दिल्ली की जनता से अपना भरपूर समर्थन आम आदमी पार्टी सरकार को दिया जिससे अन्य राजनीतिक पार्टियों को बेचैनी होना लाजिमी था|
राजनीतिक पार्टियां सीधे तो जनता की सुविधाओ पर अंगुली उठा नही सकती थी इसलिए उन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था के कंगाल होने का शिगूफा छोड़ा जबकि हकीकत ये है कि दिल्ली देश के उन गिने-चुने राज्यो में है जिसका बजट सरप्लस में रहता है मतलब वे अपने खर्च से ज्यादा आय प्राप्त करते है|

क्या लोककल्याण से कंगाल हो सकता है कोई राज्य या देश?


लोककल्याण की योजनाओं को मुफ्तखोरी कहकर ये तर्क दिया जाता है कि इससे देश/राज्य कंगाल हो जाएगा| अब इसमें समझने की बात ये है कि जब देश के लोग शिक्षित-स्वस्थ और समृद्ध होंगे तो देश कैसे बर्बाद हो जाएगा? देश का मतलब क्या है? क्या देश की परिभाषा में लोग नही आते? क्या देश को मजबूत करने के क्रम में लोगों को मजबूत और सक्षम नही बनाया जाना चाहिए?
ऐसा कैसे संभव है कि देश के लोग अशिक्षित,कमजोर, गरीब औऱ कुपोषित रह जाएं और वो देश मजबूत हो जाएं|आखिर लोगों से ही तो देश बनता है,बिना लोगों को मजबूत किये देश को कैसे मजबूत बनाया जा सकता है| देश का मतलब झण्डा,भारत माता की तस्वीर औऱ राष्ट्रगान ही थोड़े है,बिना लोगों के इन सबके क्या मायने रह जाएंगे?
लोककल्याण की योजनाओं से कोई देश कंगाल नही हुआ और न ऐसा होना संभव है| असल में सरकारों की अक्षमता औऱ भ्रष्टाचार से देश का भट्टा बैठता है जिसका ठीकरा वे आम जनता के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर फोड़ते है|
देश के बर्बाद होने का तर्क देने वाले लोगों को यूरोपीयन देशों के मॉडल का अध्ययन करना चाहिए कि वहाँ कैसे देश की अधिकांश जनता को फाइव स्टार सुविधाओं का लाभ देकर भी वे देश दुनिया के शीर्ष पर बने हुए है| अपने मानव संसाधन का कैसे सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है?
उसे कैसे काबिल औऱ सक्षम बनाकर देश हित में काम लिया जाता है ये बातें हमारी सरकारों को भी सीखनी चाहिए| ज्यादा नही तो कम से कम दिल्ली सरकार का आर्थिक प्रबंधन ही देख लेना चाहिए कि कैसे वे लोककल्याण को अपनी प्राथमिकता में रखने के बाद भी सरप्लस बजट दे पा रहे है|

गरीब आदमी का हित बनाम अमीर लोगों के हित

सरकार देश के उद्योगपतियों का लाखों करोड़ रुपए का लोन माफ कर देती है तब किसी के कान पर कोई जूं नही रेंगती किन्तु जैसे ही गरीब आदमी को कोई राहत देने वाली योजना आती है तो अर्थव्यवस्था की चिंता करने वाले लोगों के पेट में जोर से मरोड़ उठनी शुरू हो जाती है|
लाखों करोड़ रुपए का लोन माफ करना तो राइट ऑफ करना है जबकि हजारों करोड़ की लोककल्याण योजनाओं को देश की बर्बादी का कारण बता दिया जाता है| जो सक्षम है उन्हें राहत देने की क्या जरूरत है इस वाजिब बात को कोई नही कहना चाहता जबकि बेचारा जिसके पास घर नही उसे घर बनाकर देने को मुफ्तखोरी कहकर अपमान किया जाता है|
दुनिया में ऐसा कोई देश नही होगा जो अपने कमजोर औऱ पिछड़े हुए लोगो के कल्याण के लिए योजना न चलाता होगा किन्तु हमारे देश में अब एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है जिसे कमजोर वर्ग की मदद से एतराज है| असल में सरकार का ये अनिवार्य दायित्व है कि वह देश के सभी लोगों के लिए एक न्यूनतम आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करवायें|
लोककल्याण को मुफ्तखोरी कहना देश का अपमान है|जब तक देश के सभी लोगों को एक न्यूनतम जीवन स्तर तक नही लाया जाएगा तब तक ये देश न तो बड़ी महाशक्ति बन सकेगा और न विश्वगुरु| बड़े उद्योगपति और नोकरी-पेशा लोग टैक्स भरकर देश पर कोई एहसान नही करते बल्कि उद्योगपतियों का व्यापार औऱ नोकरी-पेशा लोगों की तनख्वाह देश के आम नागरिक के बूते ही चलते है|

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