शिव के मौजूदा विधायक और बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय ताल ठोक रहे रविंद्रसिंह भाटी की लोकप्रियता ने देशभर के तमाम राजनीतिक पंडितों को अचरज में डाला हुआ है| आखिर रविंद्रसिंह भाटी के पास ऐसा क्या जादू है जो लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है?
भाटी के पास न तो अपार धन है,न वे कोई बहुत बड़े व्यवसायी है,न उनके पास जनसेवा की पूंजी है और न ही ज्यादा राजनीतिक अनुभव फिर भी दुनिया की प्राचीनतम,विशालतम और सबसे अमीर पार्टियों पर भारी पड़ रहे है| ये एक शोध का विषय है कि भाटी की लोकप्रियता का असल राज क्या है?
देश के सीमांत क्षेत्र का एक मात्र 26 वर्ष का युवा देश की राजनीति में एक ऐसे तूफान के तौर पर उभर रहा जिसे रोकना अब किसी के वश की बात नजर नही आ रही| रविंद्रसिंह भाटी की लोकप्रियता का आलम ये है कि उस क्षेत्र में न तो किसी पार्टी की कोई हवा नजर आती और न ही किसी नेता की कोई लहर अगर वहाँ कुछ नजर आता है तो वो बस रविंद्रसिंह भाटी के कारवाँ का उड़ता हुआ गुबार है|
लोग रविंद्रसिंह भाटी के इस कदर दीवाने है कि उन्हें न तो 45 डिग्री सेल्सियस तापमान की परवाह है,न अगम रेतीले धोरों की,न कड़कती बिजली की और न ही रात की| जहां भी रविंद्रसिंह भाटी जाते है वहां लाखों की भीड़ पलक-पांवड़े बिछाकर उनका इंतजार करती हुई मिलती है| हजारों लोग उनके कारवाँ में हमेशा उनके साथ उनकी परछाई की तरह मौजूद रहते है|लक्ज़री गाड़ियों का काफिला, युद्ध में माथे पर कफ़न बांधकर उतरे हुए सैनिकों की तरह उनके युवा समर्थकों का हुजूम, गांव-देहात और ढाणियों में एक परिवार के सदस्य के तौर पर मिलने वाला स्नेह-आशीर्वाद रविंद्रसिंह भाटी की एक स्थायी पहचान बन चुके है|
इन सबके अलावा रविंद्रसिंह भाटी की आत्मविश्वास से भरी बॉडी-लैंग्वेज,उनके बोलने की देशी मिठास, बौद्धिकता के साथ भावनात्मक रूप से उनकी संवेदनशीलता उन्हें एक जादूगर की छवि प्रदान कर रही हैं| वे जहां भी जा रहे छा जा रहे है|
पहले वे विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित ढंग से दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को चौकाते हुए चुनाव जीत गए| उनकी वो जीत इस मायने में खास थी कि उनके सामने दोनों पार्टियों के दिग्गज नेता थे और उन्हें भाजपा जॉइन करवाकर टिकट नहीं दिया जिससे उन्हें अपने प्रचार का ज्यादा समय नही मिल पाया किन्तु फिर भी वे 15-20 दिन में चुनाव को अपने पक्ष में निकाल ले गए|
और अब लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने उनके साथ लुकाछिपी का खेल खेलना चाहा किन्तु वे इस बार सतर्क थे और समय रहते ही उनकी और से एलान-ए-जंग कर दिया गया| उनके मैदान में आने के बाद उनके साथ लोगों की भीड़ और जनसमर्थन को देखकर दोनो ही राष्ट्रीय पार्टियों की सांसें उखड़ी हुई है| कभी वहाँ देश के प्रधानमंत्री की रैली होती है तो कभी वहां कोई धर्मगुरु जाकर हिंदुत्व का राग अलापता है|
अब विचारणीय प्रश्न ये है कि रविंद्रसिंह भाटी के पास ऐसा क्या है जो उन्हें राजनीति की एक अबूझ पहली के तौर पर तब्दील कर चुका है| ऐसा नही है कि रविंद्रसिंह भाटी को किसी जाति/धर्म या क्षेत्र विशेष का ही समर्थन प्राप्त हो| उन्हें सभी धर्म/जाति और पूरे देश के लोग जीतता हुआ देखना चाहते है| उनके साथ इलाके में न केवल लहर है बल्कि प्रचंड तूफान है जिसमें किसी के खड़े रहने के आसार भी नही है|
धूमकेतु की तरह चमकते हुए इस सितारे का भविष्य का क्या होगा ये तो कोई कैसे कह सकता है किंतु उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर लग रहा है कि वे देश नही तो राज्य की राजनीति के ध्रुव तारा सिद्ध होंगे| एक सामान्य पृष्ठभूमि से उठकर अपने व्यक्तिगत संघर्ष और लोगों से जुड़ाव के दम पर बनाई छवि किस तरह से किसी इंसान को इतना लोकप्रिय बना देती है कि वो दुनिया के लिए एक पहेली बन जाता है उसे भाटी के केस में देखा और समझा जा सकता है|
भाटी का उत्कर्ष साफ-सुथरी छवि वाले, संघर्षशील और लोगों से परिवार जैसा जुड़ाव रखने वाले युवाओं के लिए राजनीति में अपनी जगह बनाने के क्षेत्र में एक आदर्श सिद्ध होगा|
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1 thought on “Ravindra Singh Bhati’s popularity बनी एक पहेली”