शिंदे सेना का बढ़ता कुनबा… कौन है इसके पीछे एक मास्टरमाइंड?

महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल लाकर उद्धव ठाकरे का तख्ता पलट करने वाले शिंदे की सेना का राजस्थान में लगातार विस्तार हो रहा है| राजस्थान के विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस के मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा ने कांग्रेस को छोड़कर एकनाथ शिंदे की शिवसेना का दामन थाम लिया था| उसके बाद अब बसपा के 2 विधायकों ने शिंदे की सेना में जॉइन कर ली है जिससे अब उनका कुनबा राजस्थान में लगातार बढ़ता हुआ महसूस हो रहा है|
मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में 16 अप्रैल(मंगलवार) को चूरु जिले के सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक मनोज न्यांगली और बाड़ी से जसवंत सिंह गुर्जर ने बसपा छोड़कर शिवसेना (शिंदे गुट) जॉइन कर ली। दोनों विधायकों के शिवसेना (शिंदे) में शामिल होने के बाद राजस्थान विधानसभा में अब बसपा विधायकों की संख्या जीरो हो गई है। बसपा के विधायक पहले भी दो बार 2008 और 2018 में चुनाव जीतने के कुछ समय बाद पार्टी बदल चुके हैं।
नवंबर-दिसंबर, 2023 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में बसपा ने दो सीट जीती थीं।। सादुलपुर सीट पर मनोज न्यांगली ने कांग्रेस की कृष्णा पूनिया को 2475 वोट से शिकस्त दी थी। बाड़ी में जसंवत सिंह गुर्जर ने तीन बार के विधायक और भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी गिर्राज सिंह मलिंगा को 27,424 वोटों से हराया था।

कौन है इस उलटफेर का असली मास्टरमाइंड?

कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में गत वर्ष लाल डायरी दिखाकर सियासी हलचल मचाने वाले बर्खास्त हुए मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा भी विधानसभा चुनावों से पूर्व गत सितम्बर माह में शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल हो गए थे। महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने गुढ़ा को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी।ऐसा माना जाता जा है कि पहले दो मौकों पर बसपा के विधायकों को कांग्रेस में लाने का काम राजेंद्र गुढ़ा के नेतृत्व में किया गया था जिसका ईनाम उन्हें दोनो बार मंत्री बनाकर दिया भी गया था तो इस बार भी वे ही इस सियासी उलटफेर के पीछे मुख्य किरदार नजर आते है| अब देखना ये दिलचस्प होगा कि इसके बदले अबकी बार उन्हें क्या ईनाम मिलता है?
यह पहला मौका नहीं है जब राजस्थान में बसपा के विधायकों ने पाला बदला हो| दरअसल में राजस्थान में बसपा के विधायकों का दल बदलने का सिलसिला पुराना है लेकिन इस बार बसपा के विधायकों ने कांग्रेस की बजाए भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए का दामन था|
पिछले 10 सालों के सूबे के राजनीतिक इतिहास को देखें तो बसपा विधायक कांग्रेस को ही किसी ना किसी तरह समर्थन देते रहे हैं लेकिन इस बार बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना मायावती के विधायकों को अपने पाले में ले जाने में कामयाब हो गई| दो बार गहलोत सरकार में राजस्थान में दो बार ऐसा हो चुका है जब बसपा के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे|असल, में किसी एक दल या निर्दलीय विधायक चुने जाने के बाद किसी दूसरे दल को समर्थन देने से उनकी विधानसभा सदस्यता खतरे में नहीं आती है|

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