Rahul Gandhi अमेठी से रायबरेली.. हार का डर या कोई रणनीति?

गाँधी परिवार का रायबरेली और अमेठी से कई दशकों औऱ कई पीढ़ियों पुराना नाता है| उत्तरप्रदेश राज्य में आने वाली ये दो सीटें गांधी परिवार को अधिकांशतः जीत का तोहफ़ा भी देती आई है| पिछली बार रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद चुनी गई थी जबकि अमेठी से Rahul Gandhi चुनाव हार गए थे|

सोनिया गांधी का राज्यसभा में जाना और रॉबर्ट वाड्रा का बयान

2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व सोनिया गांधी राज्यसभा का चुनाव जीतकर राज्यसभा की सांसद चुन ली गयी है| ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे थे कि अमेठी और रायबरेली सीट पर दोनों भाई-बहिन (राहुल-प्रियंका) इस बार चुनावी मैदान में उतर सकते है| कुछ समय पूर्व ये भी चर्चा थी कि रोबर्ट वाड्रा भी राजनीति में कदम रखते हुए रायबरेली लोकसभा से चुनाव लड़ सकते है| इस विषय में खुद रॉबर्ट वाड्रा ने खुद ये बयान दिया था कि अगर रायबरेली की जनता चाहेगी तो वे भी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर सकते है|

दोनों सीटों पर उम्मीदवार तय

किन्तु अब तमाम कयासों और अटकलबाजियों को विराम देते हुए कांग्रेस ने इन दोनों सीटों पर ही अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए है| रायबरेली से Rahul Gandhi को उम्मीदवार बनाया गया है जहां उनका मुकाबला BJP के उम्मीदवार दिनेश प्रतापसिंह से होगा जबकि अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को उम्मीदवार बनाया गया है जहां उनका मुकाबला BJP की उम्मीदवार स्मृति ईरानी से होगा|
अब इन दोनों ही सीटो पर एक तरफ तो एक भारी भरकम उम्मीदवार है और दूसरी तरफ अपेक्षाकृत कमजोर उम्मीदवार है जिससे अब पहले जैसा रोमांच देखने को नही मिलेगा| हालांकि अब दोनो ही पार्टियां दावा कर रही है कि उनके कमजोर या हल्के उम्मीदवार को हल्के में लेना सामने वाले उम्मीदवार को भारी पड़ेगा|

हार का डर या कोई रणनीति?

राहुल गांधी द्वारा अमेठी को छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने को लेकर राजनीतिक पंडितों के बीच अलग अलग राय सुनने को मिल रही है| कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि Rahul Gandhi को डर था कि वे स्मृति ईरानी के सामने दोबारा से चुनाव हार सकते है जो उनकी साख पर बड़ा आघात होगा| वहीँ दूसरी और कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्मृति ईरानी को लेकर अमेठी में असंतोष है और उनके खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी भी है ऐसे में उनका चुनाव हारना तय है इसलिए Rahul Gandhi अपने एक साधारण कार्यकर्ता के हाथों स्मृति ईरानी को हराकर अपनी हार का बदला लेना चाहते है|
वहीं दूसरी और इसे एक रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है जिसके तहत Rahul Gandhi को अपेक्षाकृत आसान सीट देकर पूरे उत्तरप्रदेश में उनसे प्रचार करवाया जाएगा अन्यथा वे अमेठी में फंसकर रह जाते| इसी तरह प्रियंका गांधी को चुनाव में न उतारकर उन्होंने परिवारवाद वाले मुद्दे को भी कमजोर करने का काम किया है| अब दोनों भाई-बहिन की जोड़ी ज्यादा ताकत के साथ अपनी पार्टी और गठबंधन की सीटों पर मेहनत कर सकेंगे|

अंजाम भविष्य के गर्त में

कांग्रेस पार्टी के इस निर्णय का अंजाम क्या होगा ये तो आने वाले समय में पता लगेगा किन्तु इतना तय है कि अगर ये निर्णय कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जाता है तो इससे एक तीर से कई निशाने सध जाएंगे|
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