दौसा लोकसभा सीट का रोचक इतिहास..

दौसा लोकसभा सीट हमेशा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित औऱ आकर्षण का केंद्र रही है| इसका प्रमुख कारण यहाँ पर चुनाव लड़ने वाले दिग्गज राजनेता और यहाँ के जातीय समीकरण है | वैसे तो दौसा अधिकतर कांग्रेस का ही गढ़ रहा है किंतु यहाँ होने वाले मुकाबले हमेशा रोचक और दिलचस्प रहे है|

दौसा लोकसभा सीट का रोचक इतिहास . . . . .

दौसा लोकसभा सीट पर पहले दो चुनाव 1952 और 1957 में कांग्रेस ने जीते | उंसके बाद 1962 और 1967 में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार इस सीट पर चुनाव जीते |
दौसा लोकसभा सीट इसलिए चर्चा में रही है कि यहाँ एक बार जम्मू-कश्मीर से आया एक सख़्श निर्दलीय चुनाव लड़कर 2-3 लाख वोट ले गया औऱ दोनो ( कांग्रेस औऱ भाजपा ) राष्ट्रीय पार्टियों की जमानत जब्त हो गयी| उस समय किरोडीलाल मीना ने निर्दलीय चुनाव जीता | उसके बाद ये सीट दो सगे भाइयों के मुकाबले की गवाह रही जिसमे हरीश मीना ने अपने ही सगे भाई नमोनारायण मीना को चुनाव हराया |

पायलट परिवार

दौसा लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा बार पायलट परिवार ने 19 चुनावों में से 7 बार जीत हाँसिल की है जिसमें राजेश पायलट पाँच बार (1984, 1991, 1996, 1998 औऱ 1999), रमा पायलट एक बार ( 2000 ) और सचिन पायलट एक बार ( 2004 ) चुनाव जीते | पायलट परिवार के बाद यहाँ पर सबसे ज्यादा तीन बार पंडित नवलकिशोर शर्मा ( 1968, 1971 औऱ 1980 ) औऱ नाथुसिंह गुर्जर दो बार ( 1977 मे जनता पार्टी और 1989 में BJP के टिकट पर ) चुनाव जीते | दौसा लोकसभा सीट को 2009 के चुनावों से ST के लिए रिज़र्व कर दिया गया है उंसके बाद से हर बार बदलते हुए तीन मीना जाति के नेता इस सीट पर जीते है|

जातीय समीकरण

जातीय समीकरण के हिसाब से देखा जाएं तो दौसा लोकसभा सीट पर तीन प्रमुख जातियों की प्रमुख भूमिका रहती है जिनमे ब्राह्मण, गुर्जर और मीना है | दौसा में SC वर्ग भी बड़ी संख्या में है किंतु इस वर्ग के कई जातियों के शामिल होने से उस तरह की एकरूपता औऱ जोर शोर नजर नही आता कि वे किसी चुनाव को प्रभावित करते नजर आए हालांकि उनकी भूमिका निश्चित तौर पर निर्णायक है|
पायलट परिवार के कर्मभूमि रहे इस लोकसभा क्षेत्र में गुर्जरों की भूमिका इस तथ्य से समझी जा सकती है कि इस सीट को ST रिज़र्व होने से पूर्व 16 बार चुनाव हुए जिनमें 9 बार गुर्जर जाति का उम्मीदवार जीता हालांकि कोई उम्मीदवार एक जाति के वोटों से चुनाव नही जीतता किन्तु किसी भी जाति का इतने बार जीतना एक रुझान की और संकेत तो है ही| राजेश पायलट जिले के सभी वर्गों में बेहद लोकप्रिय नेता थे जिसका लाभ आज भी सचिन पायलट के खाते में आता है|

किरोड़ी लाल मीणा

पायलट परिवार के बाद अगर यहाँ किसी का सर्वाधिक प्रभाव नजर आता है तो वे है किरोड़ी लाल मीणा | दौसा किरोड़ीलाल मीना की राजनीति का गढ़ रहा है और उनका अपनी जाति में एक लोकदेवता की तरह प्रभाव है | किरोड़ीलाल मीणा एक जुझारू औऱ किसी भी पीड़ित के लिए संघर्ष करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते है | दौसा ब्राह्मण राजनीति का भी गढ़ रहा है किंतु आज की तारीख में किसी सर्वमान्य नेता के अभाव में उनकी स्थिति उतनी सुदृढ नही है|
मीनाओ के लोकदेवता : किरोड़ीलाल मीणा
इस विश्लेषण के बाद ये स्पष्ट है कि गुर्जर-मीना जाति की जुगलबंदी इस सीट पर जीत का स्पष्ट सूत्र है किंतु दिक्कत ये है कि गुर्जरों के सर्वमान्य नेता सचिन पायलट कांग्रेस में है और मीनाओ के लोकदेवता जैसी हैसियत के नेता किरोड़ीलाल मीणा BJP में है | इसलिए मामला इस बार भी बेहद दिलचस्प है|
विश्लेषण की अगली कड़ी में दौसा लोकसभा सीट की मौजूदा स्थिति का आंकलन करेंगे….✍🏻

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