The supermacy of primitive animality over civilization and humanity

The earth has become a better place to live and prosper to the fullest while the mental and emotional level of animals is the same that was at the begining of this universe..

Different approach of human beings

Animals live and sort out their problems at physical level, there is no option available to those creatures. Animals have the instinct of violent reaction and their existence is based on this physical reaction while this is not true in the context of human beings.There are many other areas where human beings can show their strenghth and supermacy other than physical strenghth which is the symbol of animality.

Creativity and ability to improve

Human beings are known for their capacity to create and save life while this is not possible for animlas. When a person tries to destroy life, he/she becomes very close to an animal.
Last year, the world saw deadlly and destructive war between Russia and Ukraine which is still on. The life of crores of people badly disturbed and many of them lost their lives in this war. What may be the achievement of this deadly war at the end but destruction and waste of resources? Now,we are witness of Philistine and Israel war in which humanity is at its lowest point. People are being killed, even small children,women and innocent people are paying the price of animality in human-nature.

Is war and destruction is our area of specialisation?

Who are the responsible for this violent destruction? This is the million dollar question, is this the true sign of civilesed culture? Was this our aim of progress and development? Where are we heading? Becomimg more humane or the instint of animality are getting stronger?
Its the urgent duty of every sensible person that they must try to bring peace, understanding and harmony in society. Without mutual understanding, harmony and peace,this earth would turn into a nightmare.There would be no differnce between human beings and animals.
civilization and humanity

सभ्यता और इंसानियत पर भारी आदिमकाल की पशु-प्रवृत्ति

यह एक तार्किक निष्कर्ष है कि मनुष्य ने भी अपनी जीवन उत्कर्ष यात्रा उसी स्तर से शुरू की होगी जिस स्तर से जानवरों ने उनके जीवन स्तर की की होगी। समय के साथ, मनुष्य ने सहयोग, मित्रता और भाईचारे के मूल्यों पर अपनी विशिष्ट पहचान और सभ्यता विकसित की। इसी कारण ये पृथ्वी अच्छी तरह से जीवन जीने लायक बनी और सभी क्षेत्रों में समृद्ध होने के अवसर प्राप्त हो सके जबकि जानवरों का मानसिक और भावनात्मक स्तर वही रहा जो इस ब्रह्मांड की शुरुआत में था।

मानवीय सोच

जानवर अपना जीवन जीते हैं और अपनी समस्याओं को भौतिक स्तर पर सुलझाते हैं,उनके इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। जानवरों में हिंसक प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति होती है और उनका अस्तित्व इस शारीरिक प्रतिक्रिया पर ही निर्भर है जबकि मनुष्य के संदर्भ में यह सच नहीं है। ऐसे कई अन्य क्षेत्र हैं जहां मनुष्य शारीरिक ताकत के अलावा अपनी ताकत और सर्वोच्चता दिखा सकता है जबकि शारिरिक तौर पर तो जानवर ज्यादा सक्षम है बजाय एक मनुष्य के|

रचनात्मक सोच और विकास करने की क्षमता

मनुष्य जीवन निर्माण और जीवन को बचाने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है जबकि जानवरों के लिए यह संभव नहीं है। जब कोई व्यक्ति जीवन को नष्ट करने की कोशिश करता है, तो वह एक जानवर के बहुत करीब हो जाता है।
पिछले साल दुनिया ने रूस और यूक्रेन के बीच घातक और विनाशकारी युद्ध देखा जो अभी भी जारी है। इस युद्ध में करोड़ों लोगों का जीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया और कइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस घातक युद्ध की अंत में विनाश और संसाधनों की बर्बादी के अलावा और क्या उपलब्धि हो सकती है? अब, हम फिलिस्तीन और इज़राइल युद्ध के गवाह हैं जिसमें मानवता अपने निम्नतम बिंदु पर है। लोग मारे जा रहे हैं, यहां तक ​​कि छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं और निर्दोष लोग भी मानव-स्वभाव की पशुता की कीमत चुका रहे हैं।

क्या युद्ध औऱ विनाश ही हमारी खास योग्यता है?

इस हिंसक विनाश के लिए कौन जिम्मेदार हैं? यह लाख टके का प्रश्न है कि क्या यही सभ्य संस्कृति का सच्चा लक्षण है? क्या यही हमारी प्रगति और विकास का लक्ष्य था? हम कहाँ जा रहे हैं? हम अधिक मानवीय होते जा रहे हैं या पशुता की प्रवृत्ति मजबूत होती जा रही है?
प्रत्येक समझदार व्यक्ति का यह आवश्यक कर्तव्य है कि वह समाज में शांति, समझ और सद्भाव लाने का प्रयास करे। आपसी समझ, सद्भाव और शांति के बिना यह पृथ्वी एक दुःस्वप्न में बदल जाएगी। इंसान और जानवर में कोई अंतर नहीं रहेगा

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