Mahavir Swami and Jainism

महावीर स्वामी और जैन धर्म (महावीर जयंती विशेष)

Mahavir Swami
भारत दुनिया के तीन बड़े धर्मों ( हिन्दू-बौद्ध औऱ जैन ) की जन्मभूमि रहा है जिनमें से एक जैन धर्म भी है| महावीर स्वामी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक/प्रवर्तक माना जाता है|
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुण्डलग्राम नामक गांव में आज से करीब साढ़े पच्चीस सौ वर्ष पहले 599 ई.पू. में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को क्षत्रिय वर्ण के इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्द्धमान था | इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था।
Mahavir Swami
जैन धर्म के दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर स्वामी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया परन्तु इसी धर्म की स्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर स्वामी ने न केवल विवाह किया बल्कि उनके एक पुत्री का भी जन्म हुआ| महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में अपने माता पिता के देहावसान के बाद गृहस्थ जीवन को त्याग कर वैराग्य धारण कर लिया| महावीर स्वामी ने 12 वर्षो तक कठिन तपस्या की औऱ इस कठिन कठिन तपस्या के बाद 42 वर्ष की अवस्था मे जुम्भग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के किनारे पर साल के वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुयी जिसे जैन धर्म मे कैवल्य के नाम से जाना जाता है।
महावीर स्वामी अपनी पूरी तपस्या के दौरान मौन धारण किया और बिना वस्त्रों के रहे|  महावीर स्वामी ने तपस्या के दौरान लंबे लंबे उपवास किये जिनके दौरान वे लगातार तीन-तीन माह तक भूखे रहें| महावीर स्वामी जी ने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिसके कारण इन्हें जितेन्द्रिय कहा गया|
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए जिनमे महावीर स्वामी जी अंतिम औऱ 24वें तीर्थंकर थे | महावीर स्वामी जी ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद लोक-कल्याण के उद्देश्य से उपदेश देना प्रारंभ कर दिया| महावीर स्वामी के मुख्य शिष्यों की संख्या ग्यारह थी जिन्हें गणधर कहा जाता था| मौर्य वंश के शासक बिम्बसार तथा चंद्रगुप्त जैन धर्म के सिद्धांतों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए|
महावीर स्वामी ने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह को अपने उपदेश का प्रमुख विषय बनाया जिसे जैन धर्म मे पंचशील सिद्धांत के नाम से जाना जाता है|
लगभग 72 वर्ष की अवस्था मे 527 ई.पू. कार्तिक अमावस्या को बिहार राज्य के नालन्दा जिले में पावापुरी नामक स्थान पर इनको मोक्ष की प्राप्ति हुई| जैन धर्म के अनुयायियों के द्वारा तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्मदिन को महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन वर्धमान ( फैल जाने वाले ) से लेकर तीर्थंकर ( जीवन से सिकुड़कर पार जाने वाला ) हो जाने का एक अद्भुत उदाहरण है| एक क्षत्रिय राजकुमार जो बाद में राजा बनकर तमाम राजसी वैभव और सुख सुविधाओं का आनंद लेता है फिर वो ही इंसान इतनी कठिन साधना करता है कि पूरी दुनिया में वैसी मिशाल कहीं देखने को नही मिलती है|
महावीर स्वामी के सिद्धांतो पर चलने वाला जैन धर्म दुनिया के सबसे खूबसूरत औऱ शांतिप्रिय धर्मो में से एक है| जियो और जीने दो के सिद्धान को मानने वाले अनुयायियों का ये धर्म आज की तारीख में सबसे समृद्ध, शिक्षित औऱ शालीन धर्म है|कठिन तपस्या औऱ संयमित जीवन शैली पर पर आधारित ये धर्म प्राणिमात्र के प्रति करुणा और दयाभाव को अपना दायित्व मानता है| इस धर्म के अधिकतर लोग व्यवसायी है और इनमें में शिक्षा का स्तर बहुत उच्च है|
Mahavir Swami
India has been the birthplace of three major religions of the world (Hindu, Buddhism and Jainism), one of which is Jainism. Mahavir Swami is considered to be the real founder/promoter of Jainism.
Mahavir Swami was born in a village Kundalgram near Vaishali about twenty-five hundred years ago in 599 BC in Ikshvaku dynasty of Kshatriya caste on Chaitra Shukla Trayodashi. Mahavir Swami’s childhood name was Vardhman. His father’s name was Siddharth and mother’s name was Trishala.
 According to the Digambara sect of Jainism, Mahavir Swami followed the vow of celibacy throughout his life, but according to the Swetambara sect of the same religion, Mahavir Swami not only married but also had a daughter. Mahavir Swami at the age of 30. After the death of his parents, he renounced family life and adopted Vairagya. Mahavir Swami performed rigorous penance for 12 years and after this rigorous penance, at the age of 42, Mahavir Swami attained supreme knowledge under the Sal tree on the banks of Rijupalika river near Jumbhgram, which is known as Jainism. Known as *Kaivalya.
Mahavir Swami maintained silence throughout his penance and remained without clothes. Mahavir Swami observed long fasts during his penance during which he remained hungry for three months continuously. Mahavir Swami ji had conquered his senses due to which he was called Jitendriya.
There were a total of 24 Tirthankaras in Jainism, of which Mahavir Swamiji was the last and 24th Tirthankara. After attaining Kaivalya knowledge, Mahavir Swami started preaching for the purpose of public welfare. The number of main disciples of Mahavir Swami was eleven who were called Gandhar. The rulers of the Maurya dynasty Bimbasar and Chandragupta were most influenced by the principles of Jainism
Mahavir Swami made Truth, Non-Violence, Celibacy, Asteya and Aparigraha the main subjects of his preaching which is known as Panchsheel Siddhant in Jainism.
At the age of about 72 years, in 527 BC, on Kartik Amavasya, he attained salvation at a place called Pavapuri in Nalanda district of Bihar state. The birthday of Tirthankara Mahavir Swami is celebrated as Mahavir Jayanti by the followers of Jainism.
Mahavir Swami’s life is a wonderful example of changing from Vardhman (one who expands) to Tirthankar (one who shrinks and passes through life). A Kshatriya prince who later becomes a king and enjoys all the royal splendor and comforts, then the same person practices such hard sadhana that such an example is not seen anywhere in the whole world.
Jainism, which follows the principles of Mahavir Swami, is one of the most beautiful and peace-loving religions in the world. This religion of followers who believe in the principle of live and let live is the most prosperous, educated and decent religion in today’s date. Based on hard penance and restrained lifestyle, this religion considers compassion and kindness towards all living beings as its responsibility. | Most of the people of this religion are businessmen and the level of education among them is very high.

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