इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( EVM ) जब से प्रचलन में आई है तब से इस पर विवाद और संदेह की बहस शुरू हो गई थी| जो पार्टी चुनाव जीत जाती है वो इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेती है किंतु जो पार्टी चुनाव हार जाती है वो EVM में गड़बड़ का आरोप लगाकर इस पर संदेह जाहिर कर देती है| भारत में EVM पर सन्देह का इतिहास पुराना है|भारत में EVM का प्रयोग 2000-2001 के बाद से सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में होने लगा|

EVM
Toggleशुरुआती विरोध
2009 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद BJP के कद्दावर नेता और तब के नेता विपक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने EVM की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाते हुए इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए| इसके बाद BJP के ही एक प्रवक्ता औऱ नेता GVL नरसिम्हा राव ने बाकायदा एक क़िताब डे’मोक्रेसी एट रिस्क:कैन वी ट्रस्ट अवर ई.वी.एम.?’ लिखी जिसकी प्रस्तावना स्वयं लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लिखी गई| इस किताब में राव सिलसिले वार इस मशीन के इतिहास और गड़बड़ी की घटनाओं का जिक्र करते हुए अपना निष्कर्ष देते है कि EVM पर विश्वास नही किया जा सकता है|
मौजूदा विरोध
उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में BJP चुनाव जीत जाती है तो उनकी तरफ से इस बहस का अंत हो जाता है किंतु अब ये राग देश की विपक्षी पार्टियां छेड़ देती है कि EVM चुनाव का विश्वसनीय माध्यम नही है|2014 औऱ 2019 के चुनावों में लगातार दो जीत के बाद अब विपक्ष इस बात को जोर-शोर से उठा रहा है कि सत्ताधारी दल EVM में गड़बड़ी करके चुनाव जीत रहा है|

2 thoughts on “EVM में गड़बड़ी : हकीकत या झूठा शोर”