शहीद भगतसिंह : धारणा v/s हकीकत ( Part- 1 )

Bhagat Singh

सरदार भगतसिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक ऐसे चमकते हुए सितारे की तरह है जिसने सबका ध्यान अपनी ओर जरुर आकर्षित किया है| मात्र 23 साल की जिंदगी में वे 100 वर्ष से ज्यादा का जीवन जी गए औऱ देश के इतिहास में अपना नाम सदा-सदा के लिए अमिट स्याही से लिखकर अमर हो गए| देश का युवा वर्ग उन्हें अपना आदर्श मानता है और उनकी तरफ एक विशेष प्रकार का लगाव और श्रद्धा महसूस करता है| देश की आजादी की कहानी उनके नाम के जिक्र के बिना निश्चित तौर पर अधूरी है| आखिर सरदार भगतसिंह की सख्सियत में ऐसा क्या जादू था कि देश की आजादी की लड़ाई में सैंकड़ो बलिदानी देने वालों के बीच उनका नाम कुछ ज्यादा ही खास है?

भगतसिंह की लोकप्रिय छवि

जब भी भगतसिंह का नाम जेहन में आता है तो उनकी कटार जैसी मूछें,उनके हाथ में एक पिस्तौल और देशप्रेम से दमकता हुआ एक युवा चेहरा आंखों के सामने आ जाता है| इस शारीरिक वेषभूषा और स्वरूप से मन में उनकी ये छवि बनती है कि वे एक बागी, गुस्सैल और आक्रामक-हिंसक युवा रहे होंगे जिनका काम जोर-जोर से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाना और मारधाड करना रहा होगा| उनकी इसी छवि को उनके जीवन से जुड़ी दो घटनाएं सुदृढ़ भी करती हैं जिनमें से एक है लाहौर में सांडर्स की गोली मारकर हत्या और दूसरी है दिल्ली स्थित सेंट्रल असेम्बली में बम-धमाका|
किन्तु क्या ये छवि भगतसिंह के चरित्र के साथ न्याय है?क्या भगतसिंह का मात्र चित्र ही उनकी वास्तविक पहचान है?

भगतसिंह के व्यक्तित्व का दूसरा पहलू

अक्सर लोग चरित्र से ज्यादा चित्र को देखने और पूजने के आदी होते ही है| ये बात मैने राम नवमी पर लिखे राम जी के चरित्र के विषय में भी लिखी कि लोग रामजी के चित्र की पूजा करते है उनकी नकल करते है किंतु उनके मर्यादित आचरण पर उनका उतना ध्यान नही जाता| ठीक ये ही बात भगतसिंह के चरित्र के बारे में भी सही है| भगतसिंह की असली पहचान उनकी मूछें नही बल्कि उनकी उच्च बौद्धिकता है,उनकी पिस्तौल नही बल्कि उनका अध्ययन है और उनकी हिंसक सोच नही बल्कि वैचारिक क्रांति है|वे शरीर के तल पर जीने वाले इंसान नही थे बल्कि वे हृदय और मस्तिष्क के स्तर पर जीने वाले इंसान थे| हिंसा या शारीरिक बल उनकी ताकत नही थी बल्कि उनकी असल ताकत उनके विचार और वैचारिक प्रतिबद्धता थी|

भगतसिंह की पहचान पिस्तौल नहीं किताबें

भगतसिंह के समकालीन लोगों औऱ दोस्तों ने ये जिक्र किया है कि भगतसिंह के पास हर समय कोई न कोई किताब हमेशा रहती थी तो फिर जीवन में एक दिन काम आने वाली पिस्तौल उनकी पहचान कैसे बन गयी? जबकि जीवन के हर लम्हे में साथ रहने वाली पुस्तकों की ओर लोगों का ध्यान क्यों नही गया?
भगतसिंह ने जेल में जाने से पूर्व सैंकड़ो किताबों का अध्ययन किया और वे करीब 2 साल जेल रहे उस दौरान भी उन्होंने सैंकड़ो किताबों का अध्ययन किया| उन्होंने यूरोपीयन,फ्रेंच और रशियन साहित्य का अध्ययन किया औऱ इसी दौरान सैंकड़ो लेख लिखे जो तत्कालीन समय की पत्रिकाओं औऱ अखबारों में छपे| उनके लिखें लेखों से उनकी बौद्धिकता का स्तर, वैचारिक ताकत और देश-समाज के प्रति उनकी सोच का पता चलता है| किंतु ये देश का दुर्भाग्य है कि देश की अधिकांश जनता का अध्ययन से कोई ज्यादा वास्ता नही है वे चित्रों को देखकर ही चरित्र का आंकलन कर लेते है और उसी से संतुष्ट रह लेते है|

इससे अगले ब्लॉग के माध्यम से मै कुछ लेखों का जिक्र करके उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को युवा वर्ग के सामने रखना चाहूँगा:

1.धर्म को लेकर भगतसिंह के विचार
2.राष्ट्रवाद को लेकर भगतसिंह के विचार
3.राजनीतिक स्वतंत्रता या समाजिक न्याय की स्थापना?
4.जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के तौर तरीकों पर भगतसिंह के विचार
इन बिंदुओं पर भगतसिंह के विचारों से पता चलेगा कि आखिर भगतसिंह के दिल में क्या था? और उनका व्यक्तित्व कैसा था? वे किस तरह के देश का सपना सोचते हुए देश के लिए कुर्बान हुए थे? इन सब बातों का जवाब सिर्फ चित्र को देखने से नही समझ आ सकता|

Bhagat Singh: Perception v/s Reality

The name of Sardar Bhagat Singh is like a shining star in the Indian freedom movement which has definitely attracted everyone’s attention. In just 23 years of life, he lived a life of more than 100 years and became immortal by writing his name with indelible ink in the history of the country forever. The youth of the country consider him as their ideal and feel a special kind of attachment and reverence towards him. The story of the country’s independence is definitely incomplete without the mention of his name. After all, what was the magic in the personality of Sardar Bhagat Singh that his name is very special among the hundreds of people who sacrificed their lives in the fight for the country’s freedom?

Popular image of Bhagat Singh

Whenever Bhagat Singh’s name comes to mind, his dagger-like moustache, a pistol in his hand and a young face glowing with patriotism come before our eyes. This physical attire and appearance creates an image of him in the mind that he must have been a rebellious, angry and aggressive-violent youth whose job must have been to loudly raise slogans of Inquilab Zindabad and carry out violence. This image of his is also strengthened by two incidents related to his life, one of which is the shooting of Sanders in Lahore and the other is the bomb blast in the Central Assembly in Delhi.
But is this image justice to the character of Bhagat Singh? Is the mere picture of Bhagat Singh his real identity?

Another aspect of Bhagat Singh’s personality

Often people are accustomed to seeing and worshiping the picture more than the character. I also wrote this about the character of Ram ji written on Ram Navami that people worship the picture of Ram ji and imitate him but they do not pay much attention to his dignified conduct. Exactly the same thing is true about the character of Bhagat Singh. The real identity of Bhagat Singh is not his mustache but his high intelligence, not his pistol but his study and not his violent thinking but ideological revolution. He was not a person living at the level of the body but he lived at the level of heart and mind.Violence or physical force was not his strength but his real strength was his thoughts and ideological commitment.

Bhagat Singh’s identity is not pistol but books

Bhagat Singh’s contemporaries and friends have mentioned that Bhagat Singh always had some book with him at all times, then how did a pistol that was used only one day become his identity? Why did people not pay attention to his company of books?
Bhagat Singh studied hundreds of books before going to jail and during the time he remained in jail for about 2 years, he also read hundreds of books. He studied European, French and Russian literature and during this time wrote hundreds of articles which were published in the magazines and newspapers of that time. The articles written by him reveal his intellectual level, ideological strength and his thinking towards the country and society. But it is the misfortune of the country that most of the people of the country are not much concerned with studies, they judge the character only by looking at the pictures and remain satisfied with that.

Through next blog, I would like to present some aspects of his personality to the youth by mentioning some articles:

1.Bhagat Singh’s views on religion
2.Bhagat Singh’s views on nationalism
3.Establishment of political freedom or social justice?
4.Bhagat Singh’s views on the methods of Jawaharlal Nehru and Subhash Chandra Bose
Bhagat Singh’s thoughts on these points will reveal what was in Bhagat Singh’s heart? And what was his personality like? What kind of country did they dream of at the time of sacrifice? The answer to all these things cannot be understood just by looking at the picture.

7 thoughts on “शहीद भगतसिंह : धारणा v/s हकीकत ( Part- 1 )”

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