वर्ण व्यवस्था क्या, क्यों ? इसकी आलोचना के आधार और इसके पीछे छिपी वैज्ञानिकता |
Indian caste system
भारतीय दर्शन के अनुसार लोगों को चार वर्णों में बांटना एक अनोखी घटना है| वैदिक काल से ही ये व्यवस्था थी कि जन्म लेने वाले प्रत्यके इंसान को इन चार में से किसी न किसी एक वर्ण में शामिल किया जाता था| शुरू में वर्ण व्यवस्था का आधार व्यक्ति का कर्म था-जो जैसा कर्म करता था ठीक उसी अनुसार उसका वर्ण तय मान लिया जाता था किंतु कालांतर में वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया और इसमें वैज्ञानिकता की जगह रूढ़िवादी सोच प्रवेश कर गई|
वर्ण व्यवस्था को एक वैज्ञानिक विभाजन इसलिए माना जाता है कि तत्कालीन समय की आवश्यकता के अनुरूप वह विभाजन सहूलियतपूर्ण और उपयोगी था| चूंकि विभाजन कर्म के आधार पर था तो उसमें ऊंच-नीच जैसी कोई बात नही थी| दूसरा एक आदर्श समाज के लिए सभी वर्णों की लगभग समान आवश्यकता थी इस कारण से सभी वर्णों को बराबर ही महत्व दिया जाता था| समाज का एक वर्ण बुद्धि विषयक मुद्दों पर अपनी ताकत लगाता था,दूसरा वर्ण सभी वर्णों की सुरक्षा और पालन-पोषण की व्यवस्था में अपना समय लगाता था,तीसरा वर्ण समाज के आर्थिक विषयों पर अपना चिंतन केंद्रित रखता था और अंतिम(चौथा) वर्ण समाज की सभी व्यवस्था पूरी तरह से दुरुस्त रहे उसे सुनिश्चित करने के लिए बाकी के तीनों वर्णों के सहयोगी और पूरक का काम करता था| अब इस विभाजन में कम-ज्यादा महत्वपूर्ण या ऊंच-नीच की गुंजाइश कहाँ है? बल्कि जो अंतिम और चौथा वर्ण है वो इस अर्थ में ज्यादा जरूरी और महत्वपूर्ण था कि उसके बिना किसी भी वर्ण का दायित्व पूर्ण नही हो सकता था| इस व्यवस्था से साफ जाहिर है कि समाज का चार वर्णों में विभाजन किसी दुर्भावना से प्रेरित अथवा अपमानजनक नही था|
किन्तु समय के साथ इस व्यवस्था में रूढ़िवादी सोच प्रवेश करती गयी और वर्ण का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया| बस यहीं पर इस व्यवस्था को वो रोग लग गया जिसने इसकी वैज्ञानिकता को समाप्त कर आलोचना का विषय बना दिया| टॉप पर बने रहने के लिए मेहनत औऱ पुरुषार्थ की जरूरत होती है अगर वो न किया था आप टॉप पर नही टिक सकेंगे|लगातार टॉप पर कैसे बना रहा जाएं इसी को सुनिश्चित करने के लिए जो वर्ण ताकतवर थे उन्होंने वर्ण का आधार कर्म से हटाकर जन्म कर दिया जिसका परिणाम ये हुआ कि एक विद्वान का मूर्ख पुत्र भी विद्वान ही कहा गया इसी तरह एक बहादुर का डरपोक पुत्र भी बहादुर ही कहा गया जो निश्चित तौर पर आलोचना का विषय होना चाहिए|
श्रेष्ठता किसी की बपौती नही है उंसके लिए मेहनत और पुरुषार्थ करना पड़ता है| श्रेष्ठता को किसी एक के मत्थे मढ़ देना सरासर नाइंसाफी है बल्कि श्रेष्ठता के द्वार सभी के लिए समान रूप से खुले रहने चाहिए| जन्म के समय प्रत्येक इंसान पशुवत पैदा होता है किंतु वह जीवन के अंत में एक देवता के तौर पर विदा हो सकता है ठीक इसी प्रकार जन्म के समय प्रत्येक व्यक्ति शुद्र की तरह पैदा होता है किन्तु वह अपने पुरुषार्थ से एक श्रेष्ठतम इंसान के तौर पर अपनी यात्रा का समापन कर सकता है| इस तरह की संभावना धरती पर पैदा होने वाले प्रत्येक इंसान को समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए| जीवन बुद्धु से बुद्ध हो जाने की यात्रा का नाम है| कोई किसी को जन्म के साथ ही महान या घटिया का टैग दे दे ये पूर्णत अवैज्ञानिक और गलत बात है जिसकी आलोचना होनी ही चाहिए |
शराब के चरणों में प्रणाम आपका वह ब्लॉग पड़ा और पढ़ कर बहुत अच्छा तार्किक अनुभव वैज्ञानिकता का अनुभव महसूस हुआ मुझे खुशी है कि इसी प्रकार आप और भी ब्लॉग रहेंगे और हम आपके ब्लॉग को पढ़कर अपने जीवन के कुछ तत्वों को कुछ और मुद्दों को इसी प्रकार परिवर्तित करते रहेंगे
सर आपके के चरणों में प्रणाम आपका वह ब्लॉग पड़ा और पढ़ कर बहुत अच्छा तार्किक अनुभव वैज्ञानिकता का अनुभव महसूस हुआ मुझे खुशी है कि इसी प्रकार आप और भी ब्लॉग रहेंगे और हम आपके ब्लॉग को पढ़कर अपने जीवन के कुछ तत्वों को कुछ और मुद्दों को इसी प्रकार परिवर्तित करते रहेंगे